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क्या होती है बिरखा / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
भूल गई डेडर की जात
ऊंचे -ऊंचे स्वर में
गाना टर्राना ।
भूल गई चिड़िया
गा-गा
धूल में नहाना ।
मोर भी नहीं तानता
अब छत्तर
पारसाल ही तो जन्मा था
जब उतरा था अकाल
चारों कूंट
बरसी थी
धोबां-धोबां धूल ।
वह बेचारा
यह भी नहीं जानता
क्या होती है बिरखा
क्या होता है उसका बरसना ।