भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्या हो गया / राजकिशोर सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देऽते ही देऽते
क्या हो गया
लगता है
गाँव का पाँव हो गया
पाँव के कारण
गाँव चलने लगा
चलते-चलते
शहर तक चला गया
शहर देऽते ही
गाँव शहर में बदल गया
अब बदल गया
इसका रूप
बदल गया
इसका स्वरूप

बूढ़े बाबा प्रातःकाली से
नहीं होता यहाँ अब भोर
लोग जगते हैं तब
जब सड़कों पर होता है शोर
सुबह-सुबह दूध् नहीं मिलता है
यहाँ भैंस और गाय का
क्योंकि शौक है बिस्तर पर
लेने एक कप चाय का
अब नहीं मिलता दोपहर में
पीने को मट्टòा गाँव में
घी से चुपड़ी रोटी
ऽाने को गाँव में
मक्ऽन और गुड़ का
स्वाद नहीं मिलता गाँव में
मक्के की रोटी और साग
यहाँ अब नसीब नहीं
घिलसेरी पर रऽा
कुएं का ठंडा जल मिटने लगा
मड़ैया में बँध बैल
और हल बिकने लगा
अब सब गाँव शहर होने लगे
लोग यहाँ जहर बोने लगे।