क्या हो रहा है / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
जमीं पूछती, आसमां रो रहा है
अहिंसा के साये में क्या हो रहा है
सुना था युगों से जहाँ को सिखाता
रहा ज्ञान की सीख ही देश मेरा
बताता चला आ राह सीधी
खिली रोशनी जब मिटाया अन्धेरा
उसी देश की आज छाती रँगी उफ!
कि सारे वतन का गरम खून देखो
जबाबे-तलब कर रहा है जहाँ यह
करो आज इन्साफ मजमून देखो
न समझो सदा के लिए सो रहा है
जमीं पूछती, आसमां रो रहा है
यही एक आवाज है हर लवों पै
कि खुद शर्म भी आज शरमा रही है
अमन चैन का भार सौंपा जिसे था
वही होश खो आज गरमा गई है
पता भी उसे है? तवारीख में दाग
उसके ही चलते लगाया गया है
कि मुँह पे उसी के पुते आज कालिख
जहन्नुम से यह रंग मंगाया गया है
लहू से उसी दाग को धो रहा है
जमीं पूछती, आसमां रो रहा है
जगाना हमें चाहिए फिर जहाँ को
उठे क्यों न इन्सान की आज टोली
मरें हम, मिटें हम, कदम हो न पीछे,
चले क्यों न शैतान की आज गोली
मगर बस चलेगा न शैतान का अब
जले क्यों न अरमान की आज होली
किये गोद सूनी तड़पती यहाँ मां
निकलती न भगवान की आज बोली
खुदा खुद भी धीरज यहाँ खो रहा है
जमीं पूछती, आसमां रो रहा है