भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्यूँ अम्बर की पहनाई में चुप की राह टटोलें / अम्बरीन सलाहुद्दीन
Kavita Kosh से
क्यूँ अम्बर की पहनाई में चुप की राह टटोलें
अपनी ज़ात की बुनत उधेड़ें साँस में ख़ाक समो लें
धूल में लिपटी इस ख़्वाहिश की सारी परतें खोलें
धरती अम्बर सहरा परबत पाँव बीच पिरो लें
अपने ख़्वाब के हाथों में तकले की नोक चुभो लें
किसी महल के सन्नाटे में एक सदी तक सो लें
एक सदा के लम्स में वक़्त के चारों खूँट भिगों लें
गूँज में लिपटे याद के कोहना रस्तों पर फिर हो लें
इक मंज़र में इक धुँदलें से अक्स में छुप के रो लें
हम किस ख़्वाब में आँखें मूँदें किस में आँखें खोलें