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क्यूँ इस तरह भड़के मेरे जज़्बात तो सोचूँ / संकल्प शर्मा

क्यूँ इस तरह भड़के मेरे जज़्बात तो सोचूँ,
पल भर में जो बदले हैं वो हालात तो सोचूँ।

जो याद है वो बात भी बोलूँगा मैं मगर,
जो याद नहीं पहले मैं वो बात तो सोचूँ।

कहने को तो दिल में मेरे अरमान बहुत हैं,
लेकिन जो मुझे कहनी है वो बात तो सोचूँ।

अपने भी खड़े हैं मेरे दुश्मन भी खड़े हैं,
किस से मिलेगी आज मुझे मात तो सोचूँ।

तुम सोचने को कहते हो रोटी से अलग बात,
सुधरें जो पहले घर के ये हालात, तो सोचूँ।