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क्यूँ कहते हो कोई कमतर होता है / सलीम रज़ा रीवा
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क्यूँ कहते हो कोई कमतर होता है!
दुनिया में इन्सान बराबर होता है!
पाकीज़ा जज़्बात है जिसके सीने में!
उसका दिल भरपूर मुनौअर होता है!
ज़ाहिद का क्या काम भला मैख़ाने में!
मैख़ाना तो रिंदों का घर होता है!
जो तारीकी में भी रस्ता दिखलाए!
वो ही हमदम वो ही रहबर होता है!
टूटा-फूटा गिरा-पड़ा कुछ तंग सही!
अपना घर तो अपना ही घर होता है!
ताल में पंछी पनघट गागर चौपालें!
कितना सुन्दर गाँव का मंज़र होता है!
कैद करो न इनको पिंजरों में कोई!
अम्न का पंछी "रज़ा कबूतर होता है!