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क्यूँ गुनहगार को भला कह दूँ / आनन्द किशोर
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क्यूँ गुनहगार को भला कह दूँ
कैसे क़ातिल को पारसा कह दूँ
दिल से यादें न उसकी जायेंगी
ज़िन्दगी भर की क्या सज़ा कह दूँ
साथ जीता हूँ दर्दे उल्फ़त के
है मज़ा ,क्या इसे दवा कह दूँ
राहे उल्फ़त को एक दुनिया का
दर्द का क्यूँ न रास्ता कह दूँ
दोस्त बनकर दिया मुझे धोका
कैसे फिर उसको हमनवा कह दूँ
रहनुमा क़ाफ़िले को लूटे ग़र
क्यूँ उसे फिर मैं नाख़ुदा कह दूँ
डूबकर इनमें होश खो जाये
तेरी आँखों को मयक़दा कह दूँ
हैं कुँवारी जो बेटियाँ घर में
मुफ़लिसी है गुनाह क्या कह दूँ
तेरी बातों में आ के मैं क्योंकर
आज 'आनन्द' को बुरा कह दूँ