क्यूँ ज़माने पे ऐतबार करूँ / बुनियाद हुसैन ज़हीन
क्यूँ ज़माने पे ऐतबार करूँ
अपनी आँखों को अश्कबार करूँ
सिर्फ़ ख्वाबों पे ऐतबार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूँ
मेरी रग-रग में है महक तेरी
मेरे चेहरे पे है चमक तेरी
मेरी आवाज़ में खनक तेरी
ज़र्रे - ज़र्रे में है धनक तेरी
क्यूँ न मैं तुझपे दिल निसार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूँ
तुझपे कुरबां करूँ हयात मेरी
तुझसे रोशन है कायनात मेरी
बिन तेरे क्या है फिर बिसात मेरी
जाने कब होगी तुझसे बात मेरी
कब तलक दिल को बेक़रार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूँ
मेरी आँखों की रोशनी तू है
मेरी साँसों की ताजगी तू है
मेरी रातों की चांदनी तू है
मेरी जां तू है, ज़िन्दगी तू है
हर घड़ी तेरा इन्तिज़ार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूं
तू ही उल्फ़त है, तू ही चाहत है
अब फ़क़त तेरी ही ज़रूरत है
हसरतों की ये एक हसरत है
इश्क़ से बढ़के भी इबादत है?
तुझको ख्वाबों से क्यूँ फरार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूँ