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क्यूँ न होवे इश्क सूँ आबाद सब हिंदोस्ताँ / वली दक्कनी
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क्यूँ न होवे इश्क सूँ आबाद सब हिंदोस्ताँ
हुस्न की देहली का सूबा है मुहम्मद यार ख़ाँ
पेच-ओ-ताब-ए-बेदिलाँ इस वक्त़ पर बेजा नहीं
लटपटी दस्तार सूँ आता है वो नाज़ुक मियाँ
दिल हुए उश्शाक़ के बेताब मानिंद-ए-सिपंद
जब वो निकले हो सवा-ए-ताज़ि-ए-आतिश इनाँ
जिस तरफ़ हो जल्वागर वो आफ़ताब-ए-बेनज़ीर
सुब्ह के मानिंद होवे रंग-ए-रू-ए-गुलरुख़ाँ
कब नज़र आवेगा या रब वो जवान-ए-तीर क़द
जिसके अबरू के तसव्वुर ने किया मुझको कमाँ
ऐ 'वली' गर मेहरबाँ हो वो चमन आरा-ए-हुस्न
ख़ातिर-ए-नाशाद होवे रश्क-ए-गुलज़ार-ए-जिनाँ