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क्यों सुलगती रहती है ए ज़िंदगानी
कभी धुंआ-धुंआ कभी उदास पानी
अब जला भी देते हैं तेरे हसीन अफ़साने
चलो अब भूल भी जाते हैं तेरी हर एक कहानी
बहुत हुआ तेरे सिर्फ़ तेरा तामील-ए-हुक्म
'शिव' ज़रा मैं भी करके देख लूँ कुछ मनमानी