क्यूं इत्ता नाराज / पारस अरोड़ा
इत्ता नाराज क्यू हौ बापू
जे म्हैं नीं मांनी थांरी बात
गयौ परौ
थांरौ बरजता थकां ई बारै
लारै
थे उडीकता रैया म्हारी बाट।
कुण कियौ आकास इत्तौ बदरंग
दिसावां
क्यूं आपरी ओळख गमाय दी
क्यूं फेर जमीं
पांणी बदळै लोही री मांग करै ?
थे आरां उत्तर नीं देय सकौ
परवा नीं।
म्हैं बिना उत्तर नीं रैय सकूं।
जै म्हैं गयौ परौ
गरम हवा
अर धारदार हालात साथै
गस्त लगावतै
खतरै सांमी/मुकाबलै सारू/मित्रां साथै
उकेरतौ सवाळां रा जवाब
तौ क्यूं उदास आंगणै
थे बेराजी ओढ़ आबोला व्हेगा।
थे इज कैवता
वां दिनां/उण बगत /नीं सुणी
किणी री थे
अर निकळागा हा बारै
आपरी जमीं/आपरै आकास री
नरभक्सी, अंधारी दिसावां रे मांय
लारै-थांरी बात जोबती रैयी
घर री थळी
तूटोड़ी मचली नीचै फाटोड़ी जूत्यां
अेकांनी उदास पड़यौ
टाबर रौ गाडूल्यौ
तद सुणी कोई री थे
मांनी किणी री ?
फौलाद सूं बत्तौ मजबूत व्है आदमी
दावालळ सूं बत्ती तेज व्है, अंतस री लाय
थे साबित करी
भोटा पड़गा दमन रा तमाम हथियार
थां लोगां सूं टकरीज’र
पाछा पड़ण लागा हा, साही घोड़ां रा पग
थांरी अगन-झळ में अपड़ीज’र
खतरौ उण बगत ई कम नीं हौ
सूखगी ही कटोरदान मांयली रोटी
दुखियारण रसोई में सोयगी ही
थांनै देवण सारू झरूंटिया मंडाय’र ई
दोय पाका बोर लियोड़ौ
सोयगौ हौ म्हैं/थारीं बाट उडीकतौ
दादोसा री मारग मुखी आंखियां
नीं झपकी ही सारी रात।
हाल ई/भर-सरदरी देखूं थांनै टसकाता
उण रात जिण विध थे झेल लिया बार
पसवाड़ा फेरण लागै वा जूंनी मार
उण बगत थे
सगळा रिस्ता झाड़-झटक
गया परा बेलियां रै लार।
पच्छै, इत्ता नाराज क्यूं हो बापू
जे म्है नीं मांन थांरी बात
म्हांणी बात/ म्हांणी जमीं/म्हांणै आकाश सारू
देखौ बापू
इण बदरंग व्हियौड़ै थांरै आकास सारू
गयौ परौ काटीज्योड़ै फौद रा
छिलका उतारण
लैय रंदौ
बणा टोळौ
गुण-अवगुण थांरा की पालतौ
रैवूं म्हैं चालतौ
धरौ
धरौ म्हारै मौर थांरै हाथ
बापू, इणमें नाराजगी री किसी बात।