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क्यूं दिल में कुछ अरमान नहीं / विकास जोशी
Kavita Kosh से
यूं तो मुश्किल थी ये दुनिया हम मगर आसान थे
जानते थे जबकि हम इसमें कई नुक्सान थे
जिस्म मिट्टी का लिए हम तब सफ़र के हो लिए
बादलों के जब बरसने के बहुत इमकान थे
हम वफ़ा करते रहे उस बेवफ़ा से उम्र भर
हम ज़माने की बदलती रस्म से अनजान थे
यूं तो थे आबाद सच के रास्ते यारों मगर
चल के देखा हमने तो पाया के सब वीरान थे
दर्द आहें ग़म पहेली अश्क़ दुःख मजबूरियां
ये किताबें ज़ीस्त के सब मुख्तलिफ़ उन्वान थे
गुफ़्तगू के तौर से वाक़िफ नहीं थे वो मगर
उनको है शिकवा ये की दीवार के भी कान थे
ज़िन्दगी भर की हिफ़ाज़त सबने इस सरमाए की
ये बदन तो था अमानत हम फ़क़त दरबान थे