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क्योंकि ख़ाली करना पड़ती हैं जगहें / नवीन रांगियाल

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लैला भी मरेगी, मजनू भी मरेगा
उनके बाप भी मरेंगे,
जहां वो रहते हैं वो शहर और सरकार भी मरेगी

जो औरतें गोल गोल रोटियां बनाती हैं वो भी
और जो नर्म मिज़ाज शायर हैं वो भी दुनिया छोड़कर जाएंगे

जिन्होंने बहुत सुंदर फूल- मालाएं तैयार कीं
वो क्यूंकर रुकेंगे दुनिया में

लकड़ी के पलंग, झूले और दरवाजें बनाने वाले अच्छे से अच्छा कारीगर भी जाता ही एक दिन

हमनें उन्हें भी जाते हुए देखा
जिनके हाथ बहुत नर्म और मुलायम थे
जिनकी गर्म हथेलियों में बहुत महफ़ूज़ थी दुनिया हमारी

दुनिया का सबसे अच्छा गोश्त
और शिरखुरमा बनाने वाले उस्ताद को भी खा जाएगी मौत

बहुत सुंदर क़सीदे गढ़ने वाले
पतंग और कबूतर उड़ाने वाले आवारा भी जाएंगे

सारे क़िस्सागोई
और कमाल की बातें का करने वाले कवि

साड़ियों को रंगने वाले रंगरेज़
और चाकू की धार तेज़ करने वाले

प्रेम में इतराते बेख़ुद आशिक़
दुनिया के तमाम शराबखानों में बैठे रद्द करदा लोग

होशमंद, बेहोश और रिंद सारे
आज़ाद, गुलाम, गूंगे और बेहरे सब

जो चूड़ियां पहनाते हैं गलियों में घूमकर
जो घर- घर मांगते हैं भीख

जिनके हाथ कमंडल, जिनके गले में नाग
ऐसे योगी और औघड़ भी जाएंगे परदेस

गला फाड़कर अज़ान देने वाले
और मंदिरों में घी जलाने वाले पंडितों को भी दुनिया अपने पास नहीं टिकने देती

क्योंकि ख़ाली करना पड़ती हैं जगहें
क्योंकि जगहों का अर्थ ही होता हैं ख़ाली करना

अपना जीना, अपना मरना।