क्योंकि मृत्यु कोई माफ़ीनामा नहीं है
और मैं तुम्हारा मुंसिफ़ नहीं हूँ ।
चिता की आँच तक
मगरगोह पालने वाले लोग चाहते हैं
कि मैं ज़हर की निन्दा न करूँ
क़ब्र की मिट्टी तक
बारूद की कालीन बुनने वाले लोग चाहते हैं
कि मैं भाषा पर मलाई लगाकर
सिर्फ़ प्रेमिका का परिचय लिखूँ
पर मैं जानता हूँ
वह ज़हर मेरी बहन के कण्ठ के लिए
पाला गया है
और वह बारूद
मेरी प्यारी के चीथड़े उड़ा देने की
ख़्वाहिश रखता है ।
जीवनभर मगरगोह पालने वाले लोगो !
और जीवनभर बारूद की खेती करने वाले लोगो !
मैं तुम्हारी चिता की आँच तक आऊँगा
क़ब्र की मिट्टी तक आऊँगा
और डर की पुतली पर खड़ा होकर
पूरी ताक़त से चिल्लाकर
तुम्हें हत्यारा कहूँगा
क्योंकि मृत्यु कोई माफ़ीनामा नही है
और मैं तुम्हारा मुंसिफ़ नहीं हूँ ।