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क्यों आँखों में छलका जल / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / प्रयाग शुक्ल

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क्यों आँखों में छलका जल
 
क्यों हो आया मन उन्मन
सहसा मन में कुछ आया
ना आकर भी कुछ आया
चहुँओर मधुर नीरवता
फिर भी ये प्राण कलपते

फिर भी मेरा मन उन्मन
यह व्यथा समाई कैसी
कैसी यह एक कसक-सी
किसका हुआ है अनादर
लौटा कोई क्या आकर

सहसा मन में कुछ आया
ना आकर भी कुछ आया

मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल