Last modified on 7 सितम्बर 2020, at 23:20

क्यों इस जहाँ में नाशाद हैं सब / उदय कामत

क्यों इस जहाँ में नाशाद हैं सब
इक तू नहीं बस, बर्बाद हैं सब

ख़ुद क़ैद में हो ला-इल्म लोगों
कहते हो फिर भी आज़ाद हैं सब

अफ़्सुर्दगी तो देखी है दिल की
ग़म भी वही पर आबाद हैं सब

भूले नहीं हम रहमत भरे दिन
सीखे सबक़ थे जो याद हैं सब

है दौर 'मयकश' ज़ुल्म-ओ-सितम का
इक सैद है और सय्याद हैं सब