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क्यों और किस के लिए / पारस अरोड़ा

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कई कई बार
पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले
दो पैर
-बैशाखियों के सहारे क्यों ?

अनेकानेक
व्रज-आधात सहने वाला
एक सीना
-क्यों उस में हृदय-प्रत्यारोपण ?

अंधेरे में ही
मीलों दूर स्पष्ट देखने वाली
दो आंखें
-क्यों धारे पाषाणी-स्थिरता ?

आते युगों की
समास्याओं का समाधान लिए
एक ‘मैकेनाइज्ड’ दिमाग
-क्यों नहीं लगा सकता हिसाब
खुद की जिंदगी का ?

क्यों एक रघुकुली
खड़ा है झुका हुआ
जगह-जगह से टूटा-बिखरा हुआ
जमाना
न जाने किस स्वतंत्रता के लिए
लगातार कर रहा है युद्ध ?

अनुवाद : नीरज दइया