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क्यों कोई मुझसे प्यार करे / गोपालदास "नीरज"

क्यों कोई मुझसे प्यार करे!

अपने मधु-घट को ठुकरा कर मैंने जग के विषपान किए
ले लेकर खुद अभिशाप हाय, मैंने जग को वरदान दिए
फ़िर क्यों न विश्व मुझको पागल कहकर मेरा सत्कार करे।
क्यों कोई मुझसे प्यार करे!

उर-ज्वाला से मेरा परिणय
दु:ख का ताण्डव जीवन-अभिनय
फ़िर शान्ति और सुख मेरे मानस में कैसे श्रृंगार करें।
क्यों कोई मुझसे प्यार करे!

जीवन भर जलता रहा, किन्तु निज मन का तिमिर मिटा न सका
इतना रोया, खुद डूब गया, पर जलता हृदय बुझा न सका
फ़िर क्यों न अश्रु भी नयनों में अब आने से इन्कार करें।
क्यों कोई मुझसे प्यार करे!