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क्यों गरजते हैं ये मेघ / साँवरी / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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पिया
आषाढ़ के मेघ गरजते हैं
ऐसे में तुम्हें न पा सकी
तो क्या पा सकी।
अगर मैं यह जानती
कि तुमसे बिछोह होगा
तो सच कहती हूँ प्रियतम
जन्म ही नहीं लेती।

आज तुम नही हो
तो यह वर्षा नहीं सुहाती है
तड़पता है जी
बिलखता है मन
धड़कती है छाती
लगता है
देह पर किसी ने
अग्निवाण मारा हो
वर्षा की बूंदों से
हो गये है बदन पर फफोले
ऐसे में अंग-अंग ही
टहकता है प्रियतम।

पिया
यह जो देखते हो इन्द्रधनुष
यह मेरे मन का ही तो है
हास-हुलास।
प्रियतम
सावन भी आ गया
सखियाँ मेंहदी रचाने लगी हैं
हरे काँच की चूड़ियाँ पहन कर
हुलसने लगी है
लेकिन मेरा अंग-अंग ही
झुलस रहा है
दीवार के कोने से लगी
चुपचाप बैठी हूँ मैं
एकदम निस्तेज उदास होकर
किसलिए
किसके लिए करूंगी श्रृंगार।

रात भर वर्षा
बरसती रही
और मैं जागती रह कर भी
सोई रही
सोकर भी जागती रही
सज्जित सेज पर
काटती रही रातें।

प्रियतम
मुझे अपने पर आश्चर्य होता है
कि मैं किस तरह जीवित हूँ
क्यों नहीं छूटे हैं मेरे प्राण
किसके लिए
किस निर्मोही के लिए ?