भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्यों न? / रत्नेश कुमार
Kavita Kosh से
इस पार राम
उस पार राम
क्यों न बढ़ें भैया
रोज़-रोज़ दाम?
ह्रदय में रावण
मुँह में राम
क्यों न हो भैया
सुबह में शाम?