भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्यों नहीं गए / प्रमोद कौंसवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्यों नहीं गए
भानियावाला
डोईवाला
अधोईवाला
बंजारावाला
लच्छीवाला और
दून घाटी के इन सभी वालों में
ऋषिकेश के गदियारों में बसने के लिए

तुमको चाहिए था उत्तरकाशी जाते
जाते गंगोत्री की चट्टानों को खोदते
पानी मिलता और घर-बसाते
आलू उगाते और नमक ख़रीदते
कमबख़्त अपने को वैज्ञानिक कहने वालों
से तुम क्यों डर गए कि खिसक रहे हैं
ग्लेशियर
साल-दर-साल बौने होते जा रहे हैं वो
धंस रहे हैं
तुम सुन बैठे अंधियारों में गेहूं की कोठरियों के पास
ठंडे कोठरों में कि ग्लोबल वार्मिंग है