भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्यों मुझको तुम भूल गये हो / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
Kavita Kosh से
क्यों मुझको तुम भूल गये हो?
काट डाल क्या, मूल गये हो।
रवि की तीव्र किरण से पीकर
जलता था जब विश्व प्रखरतर,
तुम मेरे छाया के तरु पर
डाल पवन से धूल गये हो।
विफल हुई साधना देह की,
असफल आराधना स्नेह की,
बिना दीप की रात गेह की,
उल्टे फलकर फूल गये हो।
नहीं ज्ञात, उत्पात हुआ क्यों,
ऐसा निष्ठुर घात हुआ क्यों,
विमल-गात अस्नात हुआ क्यों,
बढ़ने को प्रतिकूल गये हो?