यह मत पूछो मैंने तुमको
क्यों ये अंतिम पत्र लिखा
बहती हुई नदी के जल में
जलता हुआ पहाड़ दिखा
खत को पढ़ना
पढ़कर सहना
सहकर साथ सुला लेना
कभी स्वप्न में
अगर अकेले होना
हमें बुला लेना
हम बतलाएंगे क्यों कांपी
अनायास ही दीप शिखा
चर्चाओं में
जब न कटेंगे
दिन स्मृतियों में होंगे
अपने बीते पल
सारी दुनिया की
कृतियों में होंगे
सीमाओं को लांघ गया तो
समझो कौड़ी मोल बिका