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क्यों ये रिश्ते प्रीत के निभाए न गए / हरकीरत हीर

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ज़ख्म किसी से दिल के छुपाये न गए
सामने किसी के अश्क़ भी बहाये न गए

वक़्त के साथ चलूँ ये चाह थी मुझको
कटे हुए थे पर लेकिन, उड़ाये न गए

दर्दे-इश्क में जो आग लगी सीने में
जलते रहे ख्वाब यूँ कि बुझाए न गए

दिल न चाहा बहुत मिटा दूँ यादें उनकी
जो जलाने चले ख़त तो उठाये न गए

रूठी है हमसे किस्मत मनाये तो कैसे
पत्थर था खुदा भी फूल चढाये न गए

पूछता है दर्द ये सवाल अक्सर मुझसे
क्यों ये रिश्ते हीर प्रीत के निभाए न गए