पथ-पथ पर बाघ अड़ा है
सीना ताने शत्राु ऽड़ा है
नाविक देऽता जब भी तट
उमड़ा दरिया भरा है
सीऽो सीऽ हिमालय से
भारत कब किससे डरा है
घर को करो इतना विशाल
ऊपर नभ नीचे ध्रा है
भाई से क्यों लड़ते हो
लड़ने ऽातिर जग पड़ा है
मन मेरा सूऽा-सूऽा क्यों
जब चारों ओर हरा-भरा है।