भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्यों हर क़दम पे लाख तक्कलुफ़ जताइए? / सरवर आलम राज़ ‘सरवर’
Kavita Kosh से
क्यों हर क़दम पे लाख तकल्लुफ़ जताइए?
अब आए हैं तो आइए, तशरीफ़ लाइए!
जी में है ज़िन्दगी के मज़े यूँ उठाइए
बर्बाद-ए-इश्क़ होइए, घर को जलाइए!
नज़रें मिलाइए, मिरे दिल में समाइए
बन्दा-नवाज़! फ़र्क़-ए-मन-ओ-तू मिटाइए!
है मस्लिहत यही कि हक़ीक़त छुपाइए
दुनिया को दूसरी कोई सूरत दिखाइए
ये क्या कि याद कर के हमें भूल जाइए?
और भूल के भी फिर न कभी याद आइए
इक बार और मेरा कहा मान जाइए
दिल आप ही मिलेंगे, नज़र तो मिलाइए!
जिस को सलाम-ए-लुत्फ़-ओ-मुहब्बत न हो क़ुबूल
उस को सलाम कीजिए और लौट जाइए!
क्या ज़िन्दगी ने पहले किसी का दिया है साथ?
‘सरवर" दिए उमीद के फिर क्यों जलाइए?