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क्यों हर तरफ़ धुआँ ही धुआँ है बता मुझे / निश्तर ख़ानक़ाही
Kavita Kosh से
क्यों हर तरफ़ धुआँ ही धुआँ है बता मुझे
क्या ये ही शहरे-शोला-रुख़ाँ* है बता मुझे
वो फ़स्ल कौन-सी, जिसे सींचते हैं अश्क
दरिया ये किस जहत* में रवाँ है बता मुझे
देता नहीं है कोई यहाँ उम्रभर का साथ
कल तक जो हमसफ़र था, कहाँ है बता मुझे
क्यों कारोबारे-शौक़ से उकता गए हैं लोग
दिल के सिवा जो इसमें ज़ियाँ* है बता मुझे
तू मेरे साथ-साथ रहा है, सबूत दे
किस रास्ते पे मेरा मकाँ है बता मुझे
जब मैं नहीं तो मुझको मेरी शोहरतों से क्या
किस काम का ये नामो-निशाँ है बता मुझे
1- शहरे-शोला-रुख़ाँ*-सुंदर चेहरों का शहर
2- जहत--दिशा
3- ज़ियाँ--हानि