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क्रंदन / शैलप्रिया
Kavita Kosh से
ज़हर का स्वाद
चखा है तुमने?
उतना विषैला नहीं होता
जितनी विषैली होती हैं बातें,
कि जैसे
काली रातों से उजली होती हैं
सूनी रातें ।
पिरामिडी खंडहर में
राजसिंहासन की खोज
एक भूल है
और सूखी झील में
लोटती मछलियों को
जाल में समेटना भी क्या खेल है ?
दंभी दिन
पराजित होकर ढलता है
हर शाम को
और शाम
अँधेरी हवाओं की ओट में
सिसकती है
तो दूर तलक दिशाओं में
प्रतिध्वनित होती है
अल्हड़ चाँदनी की चीख़ ।
और मुझमें एक रुदन
शुरू हो जाता है ।