क्रांति की पाठशाला / अभय श्रेष्ठ
उस उदास युवती से मिलने के बाद
अचानक मुझे बोध हुआ—
चिकनी गाता की सस्ती किताब की तरह
व्यवस्था एक भव्य शौचालय है।
प्रेम और करुणा इस देश में
दलित प्रेमी की तरह
खून से लथपथ बह रहे हैं
भेरी की उफनती धार में
न्याय धर्मभक्त की लाश की तरह
झूल रहा है खड़ी के सीधे वृक्ष पर
मंद मंद खुशी के फूल खिलाते हुए
क्रूरता, भागे हुए कैदी की तरह
दौड़ रही है तलवार लहराते सड़कों पर ।
दीर्घ रोगी की हंसी की तरह
परिवर्तन, इस देश मे भीतर पनपता
कटुस का चिकना दाना है।
उस उदास युवती से मिलने के बाद
अचानक मुझे अनुभूत हुआ—
विद्रोही के आक्रोश की तरह
वेश्यावृत्ति भी एक विशाल प्रतिवाद है।
शब्दों के भार से दबी मृत कविता की तरह
शांति एक भव्य श्मशान है।
मानवता— गुम्बा के पास ही
बलात्कृत भिक्षुणी का आर्तनाद है।
शूर्पणखा के दंडित प्रेम की तरह
तुम्हारा शौर्य एक प्रयोगशाला है।
दुख है,
दुख और ईमान के बीच
नजाने क्या रिश्ता है ?
उस उदास युवती से मिलने के बाद
मुझे अनुभूत हुआ—
अविरल नदी की तरह अपराजित युवती
भुला गया क्रान्ति की पहली पाठशाला है।