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क्रांति / अशोक शुभदर्शी
Kavita Kosh से
क्रांति जेना केॅ भी हुअेॅ
क्रांति होतै
क्रांति टाललोॅ जाय सकै छै
मतुर बहुत दिनोॅ के वास्तें नै
कुछ्छु दिनोॅ केॅ वास्तें ही
क्रांति जेना केॅ भी हुअेॅ
क्रांति होतै
एतना भुखमरी
एतना भेद-भाव
एतना असमानता
एतना छद्म
एतना शोशण
तेॅ फेनु की होतै
कŸोॅ चुप रहतै लोग
कुछ्छु तेॅ बोलतै
कुछ्छु तेॅ करतै
जीतै या मरतै
क्रांति होतै ।
ई गफलतबाज
ई ऐय्यास
चोला बदलतै
लेकिन सुधरतै नै दिलोॅ से
तबेॅ की होतै
क्रांति होतै ।