भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्रांति / तुम्हारे लिए, बस / मधुप मोहता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नहीं मुझे नहीं लिखनी
क्रांति की कविता तो कतई नहीं लिखनी
अंततोगत्वा क्रांति का कवि चप्पलें चटकाता हुआ
खिचड़ी हुए बालों में हाथ फेरता हुआ,
मंडी हाउस के निकट किसी सड़क पर चाय की चुस्की
और बिना फिल्टर की सिगरेट के कश मंे सिकुड़ा
किसी सीरियल के लिए मुख गीत लिख पाने की सेटिंग करता हुआ
पाया जाता है,
और साँझ होते-होते किसी चार्टर्ड बस में गुड़गाँव प्रेषित कर दिया
जाता है
और क्रांति की कविताओं में बिखरे अनगिनत गुएवरा, कास्त्रो,
बोलिवर और कई दर्ज़न और
समांतर सिनेमा के हाशियों पर किसी सस्ती टिकाऊ धुन के अडाप्टेड
एडिशन पर नाचते रहते हैं।
मेरी भाषा हिंदी है और हिंदी में क्रांति असंभव है
हिंदी में केवल और केवल प्रेम लिखा जा सकता है
प्रेम शाश्वत और कातर और तरल।