Last modified on 29 अप्रैल 2015, at 13:53

क्रिया-कलाप के गीत / भाग - 2 / पँवारी

पँवारी लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

20.
गाँव का सारा हय कठोर
गुड़-रस खाना मऽ चटोर
काटय वी मेहरूज का जसा
पानी बी माँगत नी चकोर।।

21.
एनी गल्ली मऽ कोकी ते लाशऽ
बड़ी रही बसात कई रातऽ
गाँव का नटखट हय पोर्या
सुदबंग एक नी सडोर्या।।

22.
एक कोठड़ी खऽ केत्ताक मऽ बाटा
गरीबी मऽ होय गिल्लो आटा
उतर्या ओकी अमीरी का छिल्पा
घर में होया आधा दर्जन पिल्का।।

23.
गाँव को नाश करय नाशक
सीदा-बी बन रह्या घातक
गुलाम हन् खऽ आवत नी लाज
पोरी पारी साटी वी हय बाज।।

24.
गवलिन का घरमऽ वी घुसय
सकुनि का बाप आरू बेटा।
लाज कसी आवत नी उनखऽ
अण्डा जसा गन्ध्या वी लमेटा

25.
सवत मरीऽ घुसय आँगन बाड़ी
दूसरा की बननू चाव्हय लाड़ी
केत्तिक खैचय वा जोबन गाड़ी
हो जाहे कुई दिन सामनऽ थाड़ी।।

26.
ननद मऽरीऽ बिच्छु जसी चाबय
लोग खऽ खबूदर जसी दाबय
कसी ओकी माय नऽ जनी
ननद मऽरीऽ जरा सी नी गुनी।।

27.
राम राया कौशल्या को पूत
अवध का राजा को सपूत।।
महाबीर अंजनी को पूत
लंका जाय बन गयो दूत।।
लछमन सुमित्रा को लाल
जानकी को देवरऽ गोपाल

28.
आई, बाई बारा की यादऽ
झूलना मऽ सोयी हय सादऽ
मऽरो ते एकच हाय लाल
दूध सी लाल ओका गाल
मानसी देत नी ध्यानऽ
पकड्या वा पोर्या को कानऽ
दूध-रोटी रोज ऊ माँगय
कहाँ सी लाऊ सवत डांटय।।
इन्दल देव, एत्ती देजो बरखा
चलय हमरी जिनगी को चरखा
किरसान का खेत जेत्ता पक्हे
सौसार वाला रहे ओता हरखा।।