क्रीड़ा कौशल / शिशुपाल सिंह यादव ‘मुकुंद’
सत्य नाम से खेल- खेलने,हिरण्यकशिपु से मैच लिया
था प्रहलाद विचित्र खिलाड़ी, उसने जन-मन खैच लिया
बना नरसिंह सहायक उसका,अंतिम खेल हुआ सच्चा
यह इतिहास पृष्ठ पर अंकित, जान रहा बच्चा -बच्चा
पवन तनय का खेल-खेल में,जलधि लांघना कथा बनी
क्रीड़ा की यह उछल -कूद ही,मानो उज्वल प्रथा बनी
खेल-खेल में मेल मिला है, खेलो में है अनुशाशन
उपजे हैं बहु वीर खेल से, जिनका है ऊंचा आसन
परंपरा से खेल सजे हैं,इन्हें खिलाड़ी ने भाया
साहस,शांति स्फूर्ति-दायनी,ओज भरी क्रीड़ा काया
खेल -खेलते गेंद गिरी थी,ठनका यमुना का माथा
खेल-खेल में कृष्णचन्द्र ने,नाग -कालिया को नाथा
भीष्म,द्रोण,अर्जुन,भीमादिक,क्रीड़ा से अनुरक्त रहे
प्रति-वन्दिता चली थी तो भी,सतत धर्म में व्यस्त रहे
जीवन भर तो यही खेल है,कभी जीत तो हार कभी
अगर निराश न होओगे तो,पाओगे तुम प्यार कभी
प्रतियोगियों ! खेल तुम खेलो,अवसर तुमको झांकेगा
केलि-विशारद वर्ग तुम्हारा,मूल्यांकन खुद आंकेगा
खेलो की घड़ियां मत चूको,निज शरीर को पनपाओ
अपनी क्रीड़ा कौशल से तुम,विविध खेल गति दर्शाओ
अमर रहे सब कुशल खिलाड़ी,अमर रहे यह क्रीड़ा
बने वीर हों सभी एकमत, हरें देश की पीड़ा