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क्रीदडत कल कुँमर कान्ह कालिय बदन पर / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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क्री्डत कल कुँमर कान्ह कालिय बदन पर।
चढ़े चलत ठुमुक-ठुमुक, चमकत कुंडल बर॥
कर कंकन, भुजाबंद, कंठहार मनहर।
नयन सुबिसाल, भाल दमकत सुचि तमहर॥
बिनवत कालिय-घरनि कलित कुसुम कर-धर।
अघ-रहित भक्त भयो सर्प पाय बिमल बर॥