क्री्डत कल कुँमर कान्ह कालिय बदन पर।
चढ़े चलत ठुमुक-ठुमुक, चमकत कुंडल बर॥
कर कंकन, भुजाबंद, कंठहार मनहर।
नयन सुबिसाल, भाल दमकत सुचि तमहर॥
बिनवत कालिय-घरनि कलित कुसुम कर-धर।
अघ-रहित भक्त भयो सर्प पाय बिमल बर॥
क्री्डत कल कुँमर कान्ह कालिय बदन पर।
चढ़े चलत ठुमुक-ठुमुक, चमकत कुंडल बर॥
कर कंकन, भुजाबंद, कंठहार मनहर।
नयन सुबिसाल, भाल दमकत सुचि तमहर॥
बिनवत कालिय-घरनि कलित कुसुम कर-धर।
अघ-रहित भक्त भयो सर्प पाय बिमल बर॥