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क्रोध से भरा है / रुस्तम
Kavita Kosh से
क्रोध से भरा है
क्योंकि वह खरा है
जैसे किसी ज़माने में
खरा होता था नदियों, तालाबों और झीलों का पानी
और पशु-पक्षी आते थे उसे पीने
और नहाने उसमें,
सहज ही उतर जाते थे उसके प्रांगण में
उस पर भरोसा करते हुए
और फिर उसी सहजता से निकलकर चले जाते थे
उसे वैसा ही खरा छोड़कर।
ये एक गुज़रे हुए ज़माने की बातें हैं।
उसे याद करने वाले भी बस कुछ ही बचे हैं
और जल्द ही वे भी चले जाएँगे
उसी के साथ जो अब
क्रोध से भरा है
और ठगा-सा खड़ा है।