भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्लोज अप में फोटो / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खिड़की से झांकी है,
छत पर मंडराई है,
धूप अभी शैशव से,
बचपन तक आई है।

अभी नहीं फूले हैं,
सूरज के गाल,
पर कटना चालू है,
ठंडक के जाल,
गर्मी ने आने की,
अर्जी भिजवाई है।

दिन पर दिन बढ़ना है,
मौसम का ताप
सूरज की माला में,
गर्मी की जाप,
किरणों में थोड़ी सी,
ताकत अब आई है।

कल ही तो आए हैं,
लपटों के फोन,
सूरज अब मुस्काया,
कल तक था मौन,
अभी-अभी क्लोजअप में,
फोटो खिंचवाई है।