भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्वी हाल नी दिखेणा चुचौं कुछ करा / वीरेंद्र पंवार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्वी हाल नी दिखेणा चुचौं कुछ करा
पौड़ छन पिछेणा चुचौं कुछ करा
 
नांगो छौ त नंगी ही रेगी नांग
तिमला छन खत्येणा चुचौं कुछ करा
 
अज्युं तलक बी मैर कखी त बांग देंद
कखि नि ऐ बियेण्या चुचौं कुछ करा
 
छाडिकी फटगीक बीं बुखो इ पै
चौंळ छन बुस्येणा चुचौं कुछ करा
 
रड़दा पौड़ टुटदा डांडौ देख्यकी
ढुंगा छन खुदेणा चुचौं कुछ करा
 
द्व्वता सब्बि पोड्या छन बौंहड़
झणि कब होला दैणा चुचौं कुछ करा।