भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्षणभंगुर जगत् (चेतावनी) / शब्द प्रकाश / धरनीदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गये दस अवतार जिन महिमा अपार, तारने में भवपार वारऊ न लावते।
गये तव नाथ सिध साधक समूह सुर, मुनि ऋषि योगि यति सागर सुखावते॥
गये नृप विक्रमरु भोजहू को खोज नहि, किन्हो जिन अत तिन वेर न सिरावते॥
धरनि बने न बिलखाते बिहसाते ताते, कालि चले जाते येउ साहब कहावते॥4॥