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क्षण-क्षण की छैनी से काटो तो जानूँ! / हरीश भादानी
Kavita Kosh से
क्षण-क्षण की छैनी से
काटो तो जानूँ!
पसर गया है
घेर शहर को
भरमों का संगमूसा
तीखे-तीखे शब्द सम्हाले
जड़े सुराखो तो जानूँ!
फेंक गया है
बरफ छतों से
कोई मूरख मौसम
पहले अपने ही आंगन से
आग उठाओ तो जानूँ!
चैराहों पर
प्रश्न-चिन्ह सी
खड़ी भीड़ को
अर्थ भरी आवाज लगाकर
दिशा दिखाओ तो जानूँ!