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क्षण के संरक्षण के सनकी / केदारनाथ अग्रवाल

क्षण के संरक्षण के सनकी

नहीं देखते आगे पीछे

रहते हैं क्षण की छतुरी के नीचे

कण का जीवन जी के

गण के रण से आँखें मीचे ।