भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्षण / प्रिया वर्मा
Kavita Kosh से
की थी अलविदा जहाँ
दिन की उस चिट्ठी को
तह लगाकर पहले जैसा बंद किया।
इस्तरी किया जैसे भागलपुरी साड़ी को
और किया
स्मृति की दराज़ के सुपुर्द
निकल गई वह
अगले ही दम
उस दिन से बाहर
उस क्षण से बाहर निकलने में
शायद जन्म लग जाए
या खप जाए शायद एक पूरा प्रेम