भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्षमा करना डन्डेलिओन / रित्सुको कवाबाता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: रित्सुको कवाबाता  » क्षमा करना डन्डेलिओन

गिरिजाघर से वापस आते हुए
मैं गुज़रती हूँ डन्डेलिओन के बगीचे से !
झूमते पीले फूल
आकाश तक गाते हैं बसंत आ गया ..
कितने सारे डन्डेलिओन ,
कहीं रह न जाए ,
अतः मैं चुनती हूँ - तीन ,पांच ..सात
एक जड़ समेत भी .
तुरंत घर पहुँच कर
एक छोटे से फूलदान में मेज़ पर
डन्डेलिओन , लगते है शर्माए
क्या बात है ?
तुम दुखी हो क्या ?
सूर्य डूबते ही पंखुडियां समेटे सो जाते हैं वे
क्षमा करना डन्डेलिओन
तुम खुश थे उसी बगिया में !

अनुवादक: मंजुला सक्सेना