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क्षमा करें, जो रखते हैं मोबाइल स्वीच आफ़ / अरविन्द श्रीवास्तव
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सुख ने पता कर लिया था
अपनी चकाचौंध के चार दिन
इसलिए भी उसने
ठहरा कर अंधेरे को कसूरवार
हाँका दिया था रोशनी से
अक्सर नींद में ठोकता है कील कोई
दीवार पर लंबे समय से
वक्त-बेवक्त माथापच्ची का हिस्सा बन
मुस्कुराता है वह गुमशुदा आदमी!
अपनी गुमशुदगी के किस्सों में
हस्तक्षेप करता है बार-बार
आता है फुदक-फुदक
कल मैंने हृदय की खिड़कियाँ खोल रखी थीं
वह चला गया था गुलाब फेंककर
आज हिचकी की तरह रूक-रूक कर
बजती है घंटी टेलीफोन की
चहककर सामने आता है वह गुमशुदा आदमी
क्षमा करें,
जो रखते हैं अपना मोबाइल स्वीच आॅफ़
उसे भी मैं
गुमशुदा लोगों की सूची में
शामिल कर रहा हूँ!