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क्षितिज में ये सूरज का मंज़र तो देखो / महेश कटारे सुगम
Kavita Kosh से
क्षितिज में ये सूरज का मंज़र तो देखो ।
ज़मीं आसमां का स्वयंवर तो देखो ।।
घना मेघ बढ़ता चला आ रहा है,
फ़तह करने निकला सिकन्दर तो देखो ।
महक सूंघती है घने गेसुओं की,
अजी इस हवा का मुक़ददर तो देखो ।
बड़ी ख़ूबसूरत लगेगी ये दुनिया,
लिबासे मुहब्बत पहनकर तो देखो ।
ये लगता है जैसे अभी हँस पड़ेंगे,
तराशे हुए संगेमरमर तो देखो ।
जो बूँदों ने चूमा ज़मीं के बदन को,
सुगन्धों के खुलते हुए पर तो देखो ।
ज़मीं लाल पीली हँसी हँस रही है,
हरी कोंपलों के उठे सर तो देखो ।
अलग दास्ताँ है सुगम ज़िन्दगी की
कभी उसकी महफ़िल में आकर तो देखो ।।
29-01-2015