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क्षितिज / विजय बहादुर सिंह
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क्षितिज पर
छाई हुई है धूल
उदास धुन की तरह
बज रही है ख़ामोशी...
साँस की तरह आ-जा रही है
वो मेरे फेफड़ों में
धड़क भी तो रहा हूँ मैं
ठीक दिल की तरह...