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क क्को कोड रो (शीर्षक-कविता) / कन्हैया लाल सेठिया

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लिख दीन्ही
पोथ्यां निरी
पण कठै आयो
हाल मांडणो ?
कोनी चालै
कक्कै कोड कै स्यूं
आगै बरतो,
करूं निरथक
घस घस‘र इंडोळ्यां
पाटी-चीकणी
घणो आंतरै है हाल
बो सारसेर धन्तो ?
दीखै परतख
पड़ै सिरजण रै पैली
धरती नै तपणो,
करै आध्यां‘र भतूळिया
भिस्ट
धोरां रो माजनो
जद बणै
अंतस री पीड़
घुमट‘र
कळायण,
फेर बण ज्यावै बा
मोरियां रै
टहुकां स्यूं
रसायण !