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खंजर पर खंजर / विनय राय ‘बबुरंग’
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गजब क तमासा कइल जा रहल बा।
छू मन्तर से हमके छलल जा रहल बा॥
जइसन करनी ओइसन भरनी
कहि कहि के हमके ठगल जा रहल बा।
बिच भंवर में फंसा के ई नइया
किनारा तूं अइलऽ कहल जा रहल बा।
अइसन फहरल ई झंडा-तिरंगा
नइया ई केने बहल जा रहल बा।
कबो बहे पछुवां, कबो बहे पुरुवा
दुविधा में पड़ि के जियल जा रहल बा।
जबले बा सांस, आस कर मोरे भइया
दही अस त जिनगी महल जा रहल बा।
कइसे ई कपटियन क नास होई भइया
खंजर पर खंजर चलल जा रहल बा।