खंड-12 / पढ़ें प्रतिदिन कुण्डलियाँ / बाबा बैद्यनाथ झा
अनुपम अद्भुत जानिए, तुलसी का साहित्य।
शब्द-शब्द में ब्रह्म है, अर्थपूर्ण लालित्य।।
अर्थपूर्ण लालित्य, असंभव सा दिखता है।
जो पढ़ ले इक बार, वही कुछ सिख सकता है।।
शुद्ध समन्वित रूप, मिलेगा इसमें हरदम।
हम तुलसी साहित्य, पढ़ें सुख पाएँ अनुपम।।
मानस या कवितावली, विनयपत्रिका आप।
एकबार निश्चित पढ़ें, दूर करें संताप।।
दूर करें संताप, यहाँ हर युक्ति मिलेगी।
मिलता है सद्ज्ञान, सीखकर मुक्ति मिलेगी।
तुलसी का हर ग्रंथ, ज्ञान का अद्भुत पारस।
भाषा सरल सुबोध, पढ़ें हम प्रतिदिन मानस।।
लड़ते थे सब नित्य ही, शैव संग जब शाक्त।
वैष्णव ने था कर दिया, वातावरण विषाक्त।।
वातावरण विषाक्त, कराकर तीनों पूजा।
तुलसी का संदेश, नहीं हैं कोई दूजा।।
उस दिन से हम आप, भूल से भी न झगड़ते।
दिया समन्वय भाव, इसीसे आज न लड़ते।।
नमन आपका भी करूँ, प्रतिदिन प्रातःकाल।
संयोजन हर शब्द का, करते आप कमाल।।
करते आप कमाल, हमें हैं नित्य जगाते।
नैतिकता का पाठ, सभी को आप पढ़ाते।।
सुधरेंगे जो लोग, करें अनुसरण आपका।
मैं भी करता नित्य, हृदय से नमन आपका।।
आया वक्त चुनाव का, करें सभी मतदान।
नेता मगर सुयोग्य हो, रखकर इतना ध्यान।।
रखकर इतना ध्यान, मूल्य “मत” का पहचानें।
रहे सुरक्षित देश, हाथ किसके यह जानें।।
जाति धर्म में बाँट, वोट ग़र दल ने पाया।
बँट जाएग देश, समझ लें दुर्दिन आया।।
भागा था क्यों प्यार कर, ओ प्रियतम नादान।
आज बेक़रारी बढ़ी, तब आया है ध्यान।।
तब आया है ध्यान, सताया तूने जितना।
मुश्किल में है जान, नहीं तड़पाओ इतना।।
अभिभावक के पास, हाथ तूने था माँगा।
फिर हामी के बाद, बताओ क्यों था भागा?
नारी की अन्तर्व्यथा, समझ सका है कौन।
बिन बोले मन की दशा, कहता उसका मौन।।
कहता उसका मौन, भाव अन्दर का झलके।
दिखती है वह शान्त, अश्रु भीतर में छलके।
ममता की प्रतिमूर्ति, बनी टुख भोगे भारी।
धरती सा ही धैर्य, जन्म से रखती नारी।।
आएँ भाई हम सभी, चलें करें मतदान।
है मौलिक अधिकार यह, रखना है यह ध्यान।।
रखना है यह ध्यान, योग्य का बटन दबाएँ।
बहुत प्रलोभन देख, नहीं कुछ भी ललचाएँ।।
लें विवेक से काम, इसी में निहित भलाई।
झटपट हो तैयार, वोट दे आएँ भाई।।
जो करता है साधना, और कठिन अभ्यास।
आती हैं उपलब्धियाँ, चलकर उसके पास।।
चलकर उसके पास, पूर्ण होता हर सपना।
फिर पूरा संसार, लगेगा उसको अपना।।
पाकर भी ऐश्वर्य, कभी वह दम्भ न भरता।
वांछित फल आसान, कठिन श्रम है जो करता।।
आयी पूनम की सरस, शरद चान्दनी रैन।
विरह विदग्धा नायिका, होती है बेचैन।।
होती है बेचैन, पत्र को देख निहारे।
पञ्चबाण ले हाथ, काम तड़पा कर मारे।।
दिन तक तो है ठीक, रात होती दुखदायी।
लगता है यह रात,, जान लेने ही आयी।।