Last modified on 26 अक्टूबर 2019, at 23:52

खंड-12 / बाबा की कुण्डलियाँ / बाबा बैद्यनाथ झा

तन से तो मैं वृद्ध हूँ, ऊपर से बीमार।
जीवन के संघर्ष से, नहीं मानता हार।।
नहीं मानता हार, हमेशा गीत बनाता।
श्रोताओं के बीच, मंच पर रोज सुनाता।
कह ‘बाबा’ कविराय, काव्य रच लेता मन से।
आ जाता जब जोश, लुप्त बीमारी तन से।।

कालाधन का हो रहा, अब भारत में नाश।
शेष रहेंगे अब नहीं, आतंकी बदमाश।।
आतंकी बदमाश, तड़पते हैं अब हर पल।
मचता हाहाकार, खत्म है सबके धनबल।
कह ‘बाबा’ कविराय, खुशी में झूमें जन-जन।
होगा सकल विकास, गया है अब कालाधन।।

जीवन जिसका सरल हो, चिन्तन सदा महान।
तो वह बनता शीघ्र ही, सद्यः ब्रह्म समान।।
सद्यः ब्रह्म समान, सदा वह आदर पाता।
मिलता जब शुभ कर्म, नहीं वह आँख चुराता।
कह ‘बाबा’ कविराय, करे चर्चा जब जन-जन।
मिलता हर सम्मान, सफल समझो है जीवन।।

मेरे तो आदर्श हैं, मुनिवर दत्तात्रेय।
जिनसे मैं कुछ सीखता, देता उनको श्रेय।।
देता उनको श्रेय, सभी वे गुरुवर होते।
भवसागर में नित्य, लगाते रहता गोते।
कह ‘बाबा’ कविराय, उऋण मैं होऊँ तेरे।
यदि कह देंगे आप, प्राण भी अर्पित मेरे।।

नारी को सम्मान दे, बनिए आप महान।
पूजित हो नारी अगर, खुश होते भगवान।।
खुश होते भगवान, यही तो सृष्टि रचाती।
दे संतति को जन्म, उसे है योग्य बनाती।
कह ‘बाबा’ कविराय, निभाती दुनियाँदारी।
किसी रूप में श्रेष्ठ, सदा पूजित है नारी।।

सहती है नारी अगर, थोड़ा भी अपमान।
करे प्रताड़ित वंश को, क्रोधित हो भगवान।।
क्रोधित हो भगवान, वहाँ दुख-दैन्य बढ़ाते।
विविध रूप में दंड, दिलाकर खूब सताते।
कह ‘बाबा’ कविराय, दुखों की नदियाँ बहती।
मिले नहीं सुखचैन, दर्द नारी जब सहती।।

सबला नारी आज की, नहीं सहे अपमान।
सब क्षेत्रों में हो रहा, नारी का उत्थान।।
नारी का उत्थान, रहेगा आगे जारी।
नहीं समझिए न्यून, रहे पुरुषों पर भारी।
कह ‘बाबा’ कविराय, उसे मत समझें अबला।
देती सबको मात, बहुत ही नारी सबला।।

जितना था होता रहा, उसपर अत्याचार।
नारी भी करने लगी, अब सबका प्रतिकार।।
अब सबका प्रतिकार, नहीं अब सहन करेगी।
कर सकती हर कार्य, खर्च खुद वहन करेगी।
कह ‘बाबा’ कविराय, सजाएँ उसका सपना।
फिर देखें घर बैठ, बढ़ेगी नारी जितना।।

हे नारी तुम धन्य हो, ममता का प्रतिरूप।
माँ पत्नी बेटी बहन, सारे रूप अनूप।।
सारे रूप अनूप, तुम्हीं पर सृष्टि टिकी है।
दुनिया तेरे पास, सदा हो नम्र झुकी है।
कह ‘बाबा’ कविराय, नहीं अब हो बेचारी।
सचमुच हो वरदान, धरा पर तुम हे नारी।।

ठीक पियानो की तरह, है जीवन संग्राम।
उजली काली चाभियाँ, मिलकर करतीं काम।।
मिलकर करतीं काम, मधुर संगीत बनातीं।
सुख-दुख का ही मेल, यही संदेश सुनातीं।
कह ‘बाबा’ कविराय, रात-दिन-सा सम जानो।
वाद्ययंत्र सम देह, समझ लो ठीक पियानो।।