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खंड-20 / पढ़ें प्रतिदिन कुण्डलियाँ / बाबा बैद्यनाथ झा

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रहना होगा अब हमें, जीवन भर इक संग।
तेरा मेरा संग है, तो जीतेंगे जंग।।
तो जीतेंगे जंग, निभाकर दुनियादारी।
भोगेंगे पुरुषार्थ, करें ऐसी तैयारी।।
सुख-दुख सारे द्वन्द्व, साथ मिलकर है सहना।
कर लें हम संकल्प, उम्र भर मिलकर रहना।।
 
मिलते जीवन-मार्ग में, विविध कष्ट व्यवधान।
तेरा मेरा संग है, तो सबकुछ आसान।।
तो सबकुछ आसान, सुलभ हर वस्तु रहेगी।
संघर्षों की उच्च, बनी दीवार ढहेगी।।
अपनों का हो साथ, कठिन पर्वत भी हिलते।
देते सब सहयोग, मार्ग में जो भी मिलते।।

जाना जबसे आपको, जग देता है संग।
देख पराक्रम आपका, सब हो जाते दंग।।
सब हो जाते दंग, आपकी महिमा न्यारी।
सबसे करते प्रेम, नहीं है हिम्मत हारी।।
यही आपका लक्ष्य, धरा को स्वर्ग बनाना।
लिखकर ही इतिहास, एकदिन है फिर जाना।।
 
देती है हर पूर्णिमा, सबको यह संदेश।
मिट जाते हैं एक दिन, सबके दुख भय क्लेश।।
सबके दुख भय क्लेश, धैर्य जो भी है रखता।
करे सतत सत्कर्म, दिव्य फल वह ही चखता।।
प्रभु चरणों की भक्ति, आपदाएँ हर लेती।
यही सुखद संदेश, पूर्णिमा जग को देती।।
 
आती है यह पूर्णिमा, तीस दिनों के बाद।
शेष दिवस हम भोगते, दुख पीड़ा अवसाद।।
दुख पीड़ा अवसाद, ठीक ज्यों वेतनभोगी।
क्रमशः घटती आय, पड़े हैं घर में रोगी।।
हर आवश्यक वस्तु, नहीं घर में हो पाती।
तीस दिनों के बाद, रात पूनम की आती।।
 
पढ़ते हैं हम आप क्यों, इसपर करें विचार।
सदाचार सीखा नहीं, तो पढ़ना बेकार।।
तो पढ़ना बेकार, शिष्टता बहुत जरूरी।
शिक्षा बिन सद्ज्ञान, उसे लें मान अधूरी।।
अज्ञानी निज दोष, सदा दूजे पर मढ़ते।
नहीं बने जो शिष्ट, बता दें क्या वे पढ़ते।।

सावन में अति पूज्य हैं, बाबा भोलेनाथ।
देते हैं वे सर्वदा, निज भक्तों का साथ।।
निज भक्तों का साथ, आपदा वे हर लेते।
औढरदानी आप, त्वरित सबको वर देते।।
काँवर लेकर भक्त, चढ़ा जल बनते पावन।
आशुतोष का माह, प्रमुख होता है सावन।।
  
सावन की इस वृष्टि से, चिन्ता हुई समाप्त।
रिमझिम बून्दों से खुशी, काँवरियों में व्याप्त।।
काँवरियों में व्याप्त, बोलते बम-बम भोले।
चलते सब शिवधाम, पीठ पर काँवर डोले।।
है यह सावन मास, भक्त का अति मनभावन।
भक्तों में उत्साह, चढ़ा है जबसे सावन।।

आएँ हम भी जान लें, इसके विविध स्वरूप।
तुलसी बस पौधा नहीं, बृन्दा का यह रूप।।
बृन्दा का यह रूप, विष्णु की सहज प्रिया है।
अनगिन औषधि रूप, दिव्यगुण प्राप्त किया है।
विष्णु राम या कृष्ण, उन्हें हम नित्य चढ़ाएँ।
तुलसी का हर रूप, जानने हम भी आएँ।।
  
आए हैं जब मंच पर, कुछ कवि अति मूर्धन्य।
मुख्य अतिथि के रूप में, हुआ आज मैं धन्य।।
हुआ आज मैं धन्य, आप भी मौज मनाएँ।
हास्य व्यंग्य के छंद, सुनाकर धूम मचाएँ।
हर श्रोता हो मुग्ध, तालियाँ खूब बजाए।
हँसकर जाएँ लोग, आप जिस कारण आए।।